बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य
प्रश्न- बालक पर भारतीय समाज के विभिन्न प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर -
भारतीय समाज का बालक पर प्रभाव
बालक के व्यक्तित्त्व के विभिन्न अंगों पर भारतीय समाज का प्रभाव निम्न प्रकार दृष्टिगोचर होता है-
(1) बालक के शारीरिक विकास पर प्रभाव (Impact of Child's Physical Develop- ment) – आजकल विद्यालयों में बालक के शारीरिक विकास के लिये अनेक प्रयत्न किये जाते हैं; जैसे- खेल - कूद, व्यायाम, स्काउटिंग एवं गर्ल गाइडिंग, एन. सी. सी., एन. एस. एस. आदि के माध्यम से बालकों को अपना शारीरिक विकास करने के अवसर प्रदान किये जाते हैं। समय-समय पर युवक महोत्सव (Youth Festivals) और युवक कल्याण (Youth Welfare) के आयोजन किये जाते हैं। लेकिन हमारे देश के बालक इन सुविधाओं से अपेक्षित लाभ नहीं उठा पाते। वे इन उपयोगी कार्यक्रमों में भाग न लेकर होटल या पार्क में बैठकर सिनेमा हाल में अश्लील फिल्में देखकर सस्ती और अश्लील पुस्तकें पढ़कर और भद्दे और कामुक गानों को सुनने में अपना समय नष्ट करते हैं। टी. वी. पर दिखाए जाने वाले विभिन्न चैनलों के कार्यक्रमों ने भी बालकों को बहुत प्रभावित किया है। आज बालकों में धूमपान, मदिरापान और मादक वस्तुओं के सेवन का प्रचार बढ़ रहा है। इन सब बातों से बालकों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और उनका उचित ढंग से शारीरिक विकास नहीं हो पाता।
(2) बालक के मानसिक विकास पर प्रभाव (Impact of Child's Mental Development) - सरकार ने बालकों की शिक्षा के लिये अनेक विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, तकनीकी संस्थान, इंजीनियरिंग कालेज, मेडिकल कालेज, कृषि कालेज, कृषि विश्वविद्यालय और अन्य अनेक शिक्षा संस्थाओं की व्यवस्था की है। कोई भी बालक अपनी योग्यता, क्षमता, बौद्धिक स्तर पर रुचि के अनुसार इन शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश ले सकता है। सरकार ने प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने की भी व्यवस्था की है। अनेक राज्य सरकारों ने माध्यमिक शिक्षा को भी निःशुल्क कर दिया है। इस प्रकार भारतीय समाज में प्रत्येक बालक को अपनी मानसिक विकास के पूर्ण अवसर प्राप्त हुए हैं।
लेकिन फिर भी हमारे बालक उनसे अपेक्षित लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। समाज की कुछ ऐसी विघटनकारी प्रवृत्तियाँ हैं, जो बालक के व्यक्तित्त्व के विकास को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित कर रही हैं। शिक्षा इतनी महँगी हो गयी है कि बालक इसका लाभ नहीं उठा पाते।
भारत की अधिकांश जनसंख्या निर्धन है और ये निर्धन लोग शिक्षा की इन सुविधाओं का समुचित उपयोग नहीं कर पाते। विद्यालयों में बालकों को विषय का ज्ञान पूर्णरूप से नहीं दिया जाता वरन् केवल सूचनाएँ मात्र दी जाती हैं। उनको चिन्तन, मनन, तर्क और कल्पना शक्ति के विकास के लिये अवसर नहीं दिये जाते, नये-नये अनुभव प्राप्त करने के लिये क्रियात्मक और सृजनात्मक क्रियाएँ नहीं करायीं जातीं। आज की शिक्षा में परीक्षा प्रधान प्रणाली का बाहुल्य बना हुआ है। ऐसी परिस्थितियों में बालकों का मानसिक विकास नहीं हो पाता।
(3) बालक के आध्यात्मिक विकास का प्रभाव (Impact of Child's Spiritual Development) - बालक के आध्यात्मिक और नैतिक विकास में धर्म और नैतिकता का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। पहले भारतीय समाज का वातावरण आध्यात्मिक और नैतिक विकास के लिये अत्यन्त उपयुक्त था। शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्त्व के अन्य पक्षों के विकास के साथ-साथ बालक का आध्यात्मिक और नैतिक विकास करना भी था।
बालक को प्रारम्भ से ही ऐसा वातावरण प्रदान किया जाता था जिसमें रहकर वह अपना आध्यात्मिक विकास कर सकता था। लेकिन आज के भौतिकवादी भारतीय समाज में धार्मिक और नैतिक मूल्यों का कोई स्थान नहीं है। आज हमारा समाज पाश्चात्य सभ्यता, संस्कृति और मूल्यों से बुरी तरह प्रभावित है। औद्योगीकरण, मशीनीकरण और नगरीकरण के कारण समाज में भ्रष्टाचार, बेईमानी, स्वार्थपरता, ईर्ष्या, द्वेष और प्रतिद्वन्द्विता का बोलबाला है। आज भारतीय समाज, आध्यात्मिक दृष्टि से पतन की ओर अग्रसर है।
(4) बालक के संवेगात्मक और सौन्दर्यात्मक विकास पर प्रभाव (Impact on child's Emotional and Aesthetic Development ) - आज की शिक्षा बालक का संवेगात्मक और सौन्दर्यात्मक विकास करने में असमर्थ है। विश्वभारती जैसी कुछ संस्थाओं को छोड़कर कोई भी अन्य संस्था इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। इसका कारण यही है कि हमारे समाज ने इसके महत्त्व को नहीं समझा है। हमारे शिक्षा के पाठ्यक्रम में ऐसी क्रियाओं और विषयों का सर्वथा अभाव है, जो बालक के अन्दर इन बातों का विकास कर सकती है।
(5) बालक के सामाजिक विकास पर प्रभाव (Impact on child's Social Development) - बालक के सामाजिक विकास पर समाज का बहुत प्रभाव पड़ता है। समाज के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्ध, समाज के सदस्यों का दृष्टिकोण, समाज के मूल्य, आदर्श, रीति-रिवाज, रहन-सहन, परम्पराएँ बालक पर गहरा प्रभाव डालती हैं। समाज के द्वारा बालक को सामूहिक जीवन की शिक्षा दी जाती है और उनमें प्रेम, सहयोग, सहकार, परोपकार आदि अच्छी आदतें विकसित की जाती हैं। लेकिन आज हमारे समाज का वातावरण दूषित है, आज धन को ही सब कुछ मान लिया गया है। लोग एक-दूसरे से प्रेम, सहयोग, सहानुभूति, सहकार नहीं रखते। हमारे समाज के सदस्यों का दृष्टिकोण, उनके आदर्श और मूल्य स्वार्थ पर आधारित हैं। ऐसे वातावरण में बालक का सामाजिक विकास नहीं हो सकता है?
(6) पारिवारिक विघटन का प्रभाव (Impact of Family Disorganisation) - औद्योगीकरण और नगरीकरण के कारण अब भारत में तेजी से पारिवारिक विघटन हो रहा है। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। एकाकी परिवारों का वातावरण भी तनाव, संघर्ष, अहम् और झूठी मान-मर्यादा और खोखले आदर्शों से युक्त है।
धन की लालसा में माता-पिता दोनों का नौकरी करना भी आज के परिवारों की एक प्रमुख विशेषता है। परिवार के ऐसे वातावरण में बालक वह शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते जो उनमें मानवीय संवेदनायें पैदा करें और जिससे वह अपने व्यक्तित्त्व का सन्तुलित विकास कर सके।
(7) अपराधों का प्रभाव (Impact of Crimes ) - समाज में नैतिक और धार्मिक मूल्यों के पतन के कारण अपराध की प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं। चोरी, डकैती, राहजनी, बलात्कार आदि अपराध दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। जरा-जरा सी बातों पर एक-दूसरे की हत्या करना आज सामान्य सी बात हो गयी है। अब शिक्षा संस्थाओं के अन्दर भी इसी प्रकार की घटनाएँ आए दिन होती रहती हैं। समाज के इस दूषित, अनुशासनहीन और अनैतिक वातावरण में बालक के आदर्श चरित्र होना असम्भव है।
(8) गरीबी और बेरोजगारी का प्रभाव (Impact of Poverty and unemployment ) - हमारे देश में सामाजिक वर्गों की आर्थिक स्थिति भी अत्यन्त दयनीय है। लोगों को दोनों समय खाने को भोजन नहीं, पहिनने को कपड़ा नहीं, रहने को मकान नहीं, बीमारियों को दूर करने के लिये दवाई नहीं और शिक्षा प्राप्त करने के लिये सुविधाएँ नहीं हैं। ऐसे वातावरण में बालक अपना विकास किस प्रकार कर सकते हैं? ऐसे समाज में जहाँ दरिद्रता, अभाव, गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी का साम्राज्य है, आदर्शों, मूल्यों और सिद्धान्तों की कल्पना करना व्यर्थ है।
(9) सामाजिक बुराइयों का प्रभाव (Impact of Social Evils) - भारतीय समाज में कुरीतियों, कुप्रथाओं और बुराइयों का बोलबाला है। समाज के अधिकांश लोग इनके अनुसार अपना जीवनयापन करते हैं। देश के ग्रामीण अंचल में तो यह बुराइयाँ और अन्ध-विश्वास और भी अधिक हैं। इन सबका प्रभाव बालक के ऊपर भी पड़ता है और उसके स्वस्थ और सन्तुलित विकास में बाधा पड़ती है।
(10) दूषित राजनीति का प्रभाव (Impact of dirty Politics) - भारत के राजनीतिक दल किसी प्रकार सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं और उसके लिये कोई भी उचित और अनुचित वांछनीय और अवांछनीय, हितकर और अहितकर साधन को अपनाने में संकोच नहीं करते। अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिये वे विद्यार्थियों का भी प्रयोग करते हैं। उनसे हड़ताल करवाते हैं और उनको अनुशासन भंग करने के लिये प्रेरित करते हैं। हमारे देश की ऐसी दूषित राजनीति का कुप्रभाव बालकों पर स्पष्ट रूप से पड़ रहा है।
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- प्रश्न- समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र को जन्म देने वाली प्रवृत्तियाँ कौन-कौन-सी हैं?
- प्रश्न- शाब्दिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- पारिभाषिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ समझाइये |
- प्रश्न- समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज के आधुनिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बालक पर भारतीय समाज के विभिन्न प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को देखते हुए पाठ्यक्रम में किस प्रकार के बदलाव किये जाने चाहिये?
- प्रश्न- शिक्षा की समाजशास्त्रीय प्रवृत्ति ने शिक्षा में कौन-सी नयी विचारधाराओं को उत्पन्न किया?
- प्रश्न- शान्तिपूर्ण व सामूहिक जीवन हेतु विभिन्नता में एकता की स्थापना करने वाले घटकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शान्तिपूर्ण एवं सामूहिक रहने के लिये विभिन्नता में एकता स्थापित करने में शैक्षिक संस्थाओं की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता का अर्थ स्पष्ट करते हुए धर्मनिरपेक्षता की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय सन्दर्भ में धर्मनिरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी प्रावधानों को भी स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता को प्रोत्साहित करने वाले कारक कौन-से हैं? धर्मनिरपेक्षता के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता के कारण भारतीय समाज में क्या परिवर्तन हुए?
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की विशेषताओं एवं इसके विकास में विद्यालय की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता के विकास में विद्यालय की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रक्रिया, रूप एवं प्रमुख कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रूप बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन और शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास का क्या अर्थ है? आर्थिक विकास के साधन के रूप में शिक्षा के योगदान को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- संस्कृति से आप क्या समझते हैं? संस्कृति की आवश्यकता एवं महत्त्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए।
- प्रश्न- "शिक्षा एक सामाजिक एवं गत्यात्मक प्रक्रिया है। " इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा का समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा प्रक्रिया की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक परिवर्तन से क्या तात्पर्य है? सांस्कृतिक परिवर्तन लाने में शिक्षा की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- व्यक्ति और समाज के मध्य सम्बन्धों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- वर्तमान समाज में परिवार का स्वरूप बदल गया है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय सामाजिक व्यवस्था में असमानताओं को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए।
- प्रश्न- सामाजीकरण में परिवार का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- सामाजिक व्यवस्था की मुख्य विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विरासत से आप क्या समझते हैं? यह शिक्षा से किस प्रकार सम्बन्धित है?
- प्रश्न- सांस्कृतिक विकास की कुछ समस्याएँ बताइये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा सांस्कृतिक परिवर्तन कैसे लाती है?
- प्रश्न- शिक्षा के सामाजिक आधार से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (समाजशास्त्र और शिक्षा का सम्बन्ध)
- प्रश्न- संविधान की परिभाषा दीजिये। संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की अवधारणा बताइए। भारतीय संविधान के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अन्तर्गत वर्णित शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न धाराओं का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न प्रावधान क्या-क्या हैं?
- प्रश्न- राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों से आप क्या समझते हैं? भारतीय संविधान में लिखित नीति-निदेशक तत्त्वों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- समानता, बन्धुता, न्याय व स्वतंत्रता की संवैधानिक वादे के संदर्भ में शिक्षा के लक्ष्यों से सम्बन्धित संवैधानिक मूल्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों की कार्यप्रणाली के विषय में बताइए तथा संविधान निर्माण की विभिन्न समितियाँ कौन-सी थीं?
- प्रश्न- प्रस्तावना से क्या आशय है? भारतीय संविधान की प्रस्तावना तथा इसके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा उनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के नीति निदेशक तत्वों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में अनुच्छेद 45 का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रजातन्त्र का अर्थ स्पष्ट करते हुए प्रजातन्त्र के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रजातन्त्र के प्रमुख गुण व दोषों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र का क्या अर्थ है? भारतीय लोकतंत्र के सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय लोकतन्त्र के मूल सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्रीय समाज में शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए? उनमें से किसी एक की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "आधुनिक शिक्षा में लोकतांत्रिक प्रवृष्टि दृष्टिगोचर होती है।' स्पष्ट कीजिए तथा लोकतांत्रिक समाज में विद्यालयों की भूमिका पर भी प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जनतंत्र केवल प्रशासन की एक विधि ही नहीं है वरन् यह एक सामाजिक प्रणाली भी है। व्याख्या कीजिए |
- प्रश्न- भारत जैसे लोकतन्त्रीय राष्ट्र में शिक्षा के उद्देश्य किस प्रकार के होने चाहिए?
- प्रश्न- शिक्षा का लोकतन्त्रीकरण क्या है? स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जनतंत्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। जनतंत्र पर शिक्षा के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में जनतन्त्र से आप क्या समझते हैं? सोदाहरण पूर्णतः स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विद्यालय में प्रजातन्त्र से आप क्या समझते हैं? विद्यालय में प्रजातान्त्रिक वातावरण बनाए रखने के लिए आप क्या प्रयास करेंगे?
- प्रश्न- लोकतंत्र और शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र और अनुशासन में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- लोकतंत्र और शिक्षक एवं शिक्षार्थी में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- लोकतंत्र में विद्यालयों की क्या भूमिका होती है?
- प्रश्न- लोकतंत्र में शिक्षा का अन्य पहलू क्या है?
- प्रश्न- लोकतंत्र के लिए शिक्षा की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारत का संविधान )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शिक्षा एवं प्रजातंत्र )
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं? समानता के क्षेत्र एवं भारत में यह कहाँ तक उपलब्ध है?
- प्रश्न- अनुसूचित जातियों से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं को बताइये तथा इनके समाधान के उपायों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अनुसूचित जाति की समस्याओं के समाधान के उपाय बताइये।
- प्रश्न- अल्पसंख्यक की अवधारणा बताइये। अल्पसंख्यकों की शिक्षा के लिये किये गये प्रयासों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- ईसाई धर्म ने हमारी शिक्षा व्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित किया है? उचित उदाहरणों की सहायता से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में सार्वभौमीकरण से क्या तात्पर्य है? शिक्षा में सार्वभौमीकरण की कितनी अवस्थायें एवं वर्तमान में इनकी आवश्यकता एवं महत्व के कारण बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा की सार्वभौमीकरण की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सार्वभौम एवं समावेशी शिक्षा में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रोचक एवं प्रभावपूर्ण बनाने में शिक्षक की भूमिका की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- भारत में अधिगम संदर्भ में व्याप्त विविधताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भाषायी विविधता के संदर्भ में अध्यापक से क्या अपेक्षाएँ होती हैं?
- प्रश्न- 'जातीय व सामाजिक विविधता तथा अध्यापक' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध से आप क्या समझते हैं? आज के युग में अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के विकास हेतु शिक्षा का कार्य और शिक्षा की योजना कीजिए?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के लिए शिक्षा का सिद्धान्त आवश्यक है समझाइये |
- प्रश्न- पाठ्यक्रम और शिक्षा विधि की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अध्यापक का योगदान व स्कूल का वातावरण के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना विकसित करने के पक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय भावना के प्रसार में यूनेस्को की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
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- प्रश्न- वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? वैश्वीकरण के गुण एवं दोष बताइये।
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- प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के प्रमुख कारण स्क्रेच स्रोत क्या हैं? इन्हें दूर करने हेतु व्यावसायिक सुझाव दीजिए।
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- प्रश्न- कोठारी आयोग के द्वारा प्रवेश शिक्षा के अवसर व समानता व इससे सम्बन्धित सुझाव बताइए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में शिक्षा की असमानता को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए गए?
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- राष्ट्रीय आयोग के शैक्षिक अवसरों की समानता सम्बन्धी सुझावों को बताइए।
- प्रश्न- स्त्री शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संविधान में अल्पसंख्यकों की सुविधाओं के लिये क्या प्रावधान किये गये हैं?
- प्रश्न- शिक्षा आयोग (1964-66) द्वारा शैक्षिक अवसरों की समानता के लिये दिये गये सुझाव क्या हैं?
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता में शिक्षक की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- शिक्षा के सार्वभौमीकरण में बाधक 'शैक्षिक असमानता' को दूर करने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से क्या तात्पर्य है? इसकी आवश्यकता क्यों अनुभव की गई?
- प्रश्न- शिक्षा किस प्रकार से अन्तर्राष्ट्रीय सदभावना का विकास कर सकती है?
- प्रश्न- विद्यालय को समाज से जोड़ने में शिक्षक की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- लोकतान्त्रिक अन्तःक्रिया के माध्यम से राष्ट्रीय एकीकरण में शिक्षक की क्या भूमिका हो सकती है?
- प्रश्न- आदर्श भारतीय समाज के निर्माण में शिक्षक की भूमिका।
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक अवसरों की समानता )
- प्रश्न- सर्व शिक्षा के बारे में बताइये एवं इसके लक्ष्यों, क्रियान्वयन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय साक्षरता मिशन क्या है? विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सम्पूर्ण साक्षरता अभियान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्त्री साक्षरता कार्यक्रम पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मध्याह्न भोजन योजना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कॉमन स्कूल पद्धति का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- प्रश्न- समावेशी शिक्षा में शिक्षक की भूमिका स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- आश्रम पद्धति विद्यालय के बारे में बताइये।
- प्रश्न- आश्रम पद्धति विद्यालय की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मिड डे मील स्कीम के गुण एवं दोष की गणना कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक कार्यक्रम )